google-site-verification=zhxujp9qJ0rj98kET65TY_MNhC4o_QpVLuzV3DzTcD0 fear files: October 2021

Saturday, 16 October 2021

ज्ञानी चोर की गुफा का रहस्य

ज्ञानी चोर की गुफा का रहस्य..... 

आज जिस रहस्य कि हम बात करने जा रहे हैं वह है  हरियाणा के रोहतक जिले के महम शहर में एक बावड़ी से है। महम की बावड़ी ज्ञानी चोर की गुफा के नाम से पूरी दुनिया में जानी जाती है। लोगो का कहना है  कि उस समय एक  ज्ञानी चोर नाम का चोर था , वह एक शातिर चोर था, जो अमीरों को लूटता था और पुलिस से बचने के लिए इस बावड़ी में छिप जाता था।

इस बावड़ी में एक कुआं स्थित है। इस कुएं तक पहुंचने के लिए 101 सीढ़ियां थी, लेकिन इस कुएं में अब सिर्फ 32 ही बची हैं। 1995 में भयानक बाढ़ आई थी जिसने बावड़ी के एक बड़े हिस्से को तबाह कर दिया था। फिलहाल यह बावड़ी पर पुरातत्व विभाग का कब्जा है। अब बावड़ी के चारों तरफ रेलिंग लगा दी गई है और साफ सफाई भी की जाती है। कुछ दीवारों और सीढ़ियों को फिर से बनाया गया है।मुगलकाल में बनाई गई इस बावड़ी को रहस्यों और किस्से-कहानियों के लिए जाना जाता है। बताया जाता है कि इस रहस्यमयी बावड़ी में अरबों रुपयों का खजाना छिपा है। यह भी दावा किया जाता है कि यहां सुरंगों का जाल है जो दिल्ली, हांसी, हिसार और पाकिस्तान तक जाता है। यहां पर बावड़ी के एक पत्थर पर फारसी भाषा में लिखा गया है स्वर्ग का झरना। बावड़ी में लगे फारसी भाषा के एक अभिलेख में बताया गया है कि मुगल बादशाह के सूबेदार सैद्यू कलाल ने 1658-59 ईसवीं में इस स्वर्ग के झरने का निर्माण कराया था।

ज्ञानी चोर की गुफा के नाम से प्रसिद्ध यह बावड़ी जमीन में कई फीट नीचे तक बनी है। लोग बताते हैं कि अंग्रेजों के शासन के समय एक बारात इस सुरंग के रास्ते दिल्ली जा रही थी, लेकिन बारात में शामिल सभी लोग गायब हो गए। बारात के कई दिन बीत जाने के बाद भी सुरंग में गए बाराती न तो दिल्ली पहुंचे और न ही वापस आए। तब से यह सुरंग चर्चा का विषय बन गई है। किसी अनहोनी होने की घटना की वजह से अंग्रेजों ने इस सुरंग को बंद कर दिया। यह सुरंग अभी भी बंद है। 






Friday, 15 October 2021

भारत के मोस्ट हॉन्टेड बीच का रहस्य। ....

 भारत के मोस्ट हॉन्टेड बीच का रहस्य। .... 

 आज  हम बात करने वाले हैं गुजरात के एक ऐसे बीच के बारे में, जिसका नाम भारत की मोस्ट हॉन्टेड जगहों में शुमार है। लोगों के मुताबिक  इस बीच पर  प्रेत आत्माओं के होने का दावा किया जाता है। यहां पर अक्सर कई पैरानॉर्मल घटनाएं होती हैं।  जिसके चलते इस बीच की डरावनी कहानी देश दुनिया में मशहूर है। गुजरात का ये बीच दिखने में काफी सुंदर है, पर इसकी सुंदरता के पीछे की कई  रहस्यमयी  कहानीया  टूरिस्टों को अपनी ओर आकर्षित करती है। आइए जानते हैं गुजरात के इस हॉन्टेड बीच के बारे में। 

इस बीच का नाम डुमास  बीच है।ये रहस्यमय जगह गुजरात के सूरत शहर के समुद्री तट पर स्थित है। ये बीच दिखने में बहुत ही सुंदर व साथ मे रोमांच व अनेक रहस्य से भरा है।  दिन के समय इस बीच पर सब कुछ सामान्य रहता है और कई लोग इस जगह पर आकर यहाँ का लुत्फ उठाते हैं। परंन्तु जैसे ही रात का साया गहरा होता है। सब कुछ मानो थम सा जाता है। सुंदर सी दिखने वाली ये जगह एक वीराने में बदल जाती है। इस दौरान यहां पर कोई भी जाने की हिम्मत नहीं करता है। रात के समय बीच के आस-पास भी कोई नहीं दिखता। बीच पर घूमने के लिए आए कई लोगों ने इस बात का जिक्र किया है कि उन्होंने इस जगह पर अजीबो-गरीब और रहस्यमय आवाजों को सुना।इस रहस्यमय डुमास बीच पर अब तक कई पैरानॉर्मल घटनाओं के मामले सामने आ चुके हैं।रिपोर्ट्स की मानें तो इस बीच पर रात के समय घूमने गए टूरिस्ट आज तक वापिस नहीं आ सके हैं।


स्थानीय लोगों के अनुसार काफी पहले इस जगह का इस्तेमाल एक श्मशान घाट के तौर पर किया जाता था। लोगों की मानें तो यहां पर आज भी कई प्रेत आत्माएं भटकती हैं। इसी वजह से इस बीच की रेत का रंग काला है। रात के समय इस स्थान पर कुत्तों का स्वभाव बदल जाता है। वे कई तरह की अजीबो-गरीब आवाजें निकालने लगते हैं।

यही एक बड़ी वजह है, जिसके चलते इस स्थान का नाम भारत के मोस्ट हॉन्टेड जगहों में शुमार है। देश दुनिया से कई लोग दिन के समय इस डरावने बीच को देखने के लिए आते हैं। वहीं रात के समय इस बीच के आस पास भी कोई नहीं दिखता।कहा जाता  है रात के समय जो भी इस बीच पर गया रहस्यमी तरीके से गायब हो गया और फिर कभी वापिस नहीं आया। 

Wednesday, 13 October 2021

शापित आइलैंड

 शापित आइलैंड। ..... 

रहस्यों से भरी इस दुनिया में ऐसे कई रहस्य है जो बहुत खौफनाक व  दिल दहलाने वाले हैं  पृथ्वी पर ऐसी कई जगहें हैं, जहां पर भूत प्रेतों के होने का दावा किया जाता है। आज हम बात करने वाले हैं ऐसे आइलैंड के बारे में जिसे मौत का आइलैंड भी कहा जाता है। इस रहस्यमयी आइलैंड पर किसी को जाने की अनुमति नहीं है। इस आइलैंड का इतिहास इतना डरावना है, जिसे जानने के बाद आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। तो आइये जानते हैं।  

इस आईलैंड का नाम पोवेग्लिया आइलैंड है। ये आइलैंड इटली के वेनिस शहर और लिडो के बीच वेनेशियन खाड़ी में स्थित है। इसी वजह से पोवेग्लिया आइलैंड का नाम दुनिया की सबसे डरावनी जगहों मे शुमार होता है। ये आइलैंड अक्सर अपनी रहस्यमयी घटनाओं को लेकर चर्चा में बना रहता है।इस आइलैंड के राज से पर्दा उठाने की कोशिश में कई लोग वहां पर गए, पर आज तक वो कभी वापस नहीं आ सके हैं।

पोवेग्लिया आइलैंड मे कहा जाता है यहाँ अनेक भूत प्रेतों का वास है  इस  आइलैंड के इतिहास के मुताबिक़ सालों पहले जब इटली में प्लेग महामारी भयंकर रूप से फैली थी। उस दौरान बीमारी को लेकर सरकार के पास कोई इलाज नहीं था। बीमारी ज्यादा ना फैले इस वजह से सरकार ने करीब 1,60,000 मरीजों को यहां लाकर जिंदा जला दिया तथा उसके कुछ समय बाद काला बुखार नामक एक और बीमारी काफी तेजी से फैली। उस बीमारी से जो कोई मरा उनकी लाशों को भी इसी टापू पर लाकर दफन किया गया। मान्यता है कि तब से ही येे आइलैंड शापित है। कहा जाता है उन लोगों की आत्माएं यहां पर भटकती हैं। कई लोगों ने यहां पर प्रेत आत्माओं को देखने का भी दावा किया है।

यही नहीं कहा जाता है इस टापू से अक्सर अजीबोगरीब आवाजों के आने का दावा किया जाता है। यहां पर होने वाली रहस्यमयी घटनाओं की वजह से सरकार ने यहां पर जाने वाले लोगों के ऊपर प्रतिबंध लगा रखा है। इसी वजह से पोवेग्लिया आइलैंड को दुनिया की सबसे डरावनी जगह कहा जाता है।

Tuesday, 12 October 2021

रहस्यमयी जगह जहाँ हैं सोना ही सोना .....

रहस्यमयी जगह जहाँ हैं सोना ही सोना ..... 

एक रहस्यमयी जगह जहाँ हैं सोना ही सोना जी हाँ हम बात कर रहे है  ऐरिजोना की सुपरस्टीशन पहाड़ियों कि  जहाँ  द लॉस्ट डचमैन गोल्ड माइन में सोने की खदाने हैं, लेकिन जो भी यहां खज़ाने की खोज में  गया वह वापस लौटकर नहीं आया। आख़िरकार इस जग़ह को लोगों के लिए बंद करना पड़ा क्या हैं इन पहाड़ियों का राज़ आइये जानते है। 

अमेरिका के ऐरिजोना की सुपरस्टीशन पहाड़ियों में 'रहस्यमय' सोने का खजाना है। कहा जाता है कि कई लोग सोने की तलाश में यहां गए। यह लोग वहां भटकते रहे और खजाना नहीं मिल पाया , एरिजोना की खतरनाक पहाड़ियों में एक बार खो जाने के बाद जिंदा लौटकर आना मुश्किल है। इसके अलावा पहाड़ी में भीषण गर्मी और जाड़े के मौसम में जमा देने वाली ठंड पड़ती है। यहां की गर्मी और सर्दी बर्दाश्त करना लोगों के लिए मुश्किल होता है। ऐसे मौसम में अगर कोई इन पहाड़ियों में लापता हो गया, तो उसका बचना नामुमकिन है। 

सोने की खोज में पहाड़ियों में जाने वाले लोगों की मौत के बाद प्रशासन ने यहां लोगों के जाने पर प्रतिबंध लगा दिया। सोन के खजाने की खोज में यहां गए कई लोगों की मौत हो चुकी है। इसलिए यहां पर सोने की खदान का खनन गैरकानूनी कर दिया गया है। लेकिन इसके बावजूद लोग वहां सोने की खोज में जाते हैं और अपनी जान गंवा देते हैं। कुछ लोगों ने सोने के टुकड़े पाए हैं, लेकिन खदान का अभी तक कोई पता नहीं चल पाया है। 

ऐरिजोना की सुपरस्टीशन पहाड़ियों में खदान का खनन करना गैरकानूनी है। सोना मिला भी तो उसे सरकारी खजाने में जमा किया जाएगा, लेकिन इसके बावजूद लोग सोना ढूंढने वहां जाते हैं और जान गंवा देते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, कई लोग एरिजोना की इन खतरनाक पहाड़ियों में सोने की खोज में गए, लेकिन नहीं आए। ऐसी कई कहानियां इससे जुड़ी हुई हैं। बताया जाता है कि सोना खोजने गए लापता लोगों की बाद में पुलिस ने लाशें बरामद की। जिसके बाद यहाँ  लोगों  ने जाना बंद कर दिया। 



Sunday, 10 October 2021

इस जगह पर कैद हैं एलियंस

इस जगह पर कैद हैं एलियंस। .... 

आज जिस  रहस्यमयी जगह कि बात करने जा रहे वह  हैं अमेरिका का एरिया-51 . इस जगह को गुप्त रखा गया था जिसकी वजह से अमेरिका के लोगों को इस बारे में पता नहीं था। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने साल 2013 में पहली बार एरिया-51 के बारे में दुनिया को बताया।  यहां पर सुरक्षा कड़ी रहती है और यहां पर किसी को आने की इजाजत नहीं है। ऐसा क्या है जो इस जगह को इतना गुप्त रखा गया है। आईए जानते हैं। 

अमेरिका में साल 1950 से ही कहा जाता है कि एरिया-51 में एलियंस रहते हैं। कुछ कांस्पिरेसी थ्योरी में दावा किया गया है कि अमेरिका ने एरिया-51 में एलियंस को कैद कर रखा है और उन पर प्रयोग किए जा रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि यहां पर कंटीली बाड़ों के बीच रातों को उड़ते विमानों की चमक दिखाई देती थी। जून 1959 में पहली बार मीडिया में खबर प्रकाशित हुई कि नेवादा के आसपास रहने वाले लोग हरी चमक के साथ रहस्यमयी चीजों को उड़ता देखा है। 

इसके बाद से लगातार मीडिया में एलियंस से जुड़ी खबरें आने लगीं और लोग मानने लगे कि यहां पर एलियंस को कैदकर रखा गया है। अमेरिका के वैज्ञानिक बंधक बनाकर रखे गए एलियंस पर प्रयोग कर रहे हैं। नेवादा के इस क्षेत्र में किसी के भी आने पर रोक है, इसलिए ऐसी बातें की जानें लगीं।

अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने साल 2013 में पहली बार स्वीकार किया कि एरिया-51 जैसी कोई जगह है, लेकिन एलियंस होने से इंकार कर दिया। सीआईए ने बताया कि यह एक अमेरिकी एयरफोर्स बेस है। नेवादा में एक सूखी हुई झील पर यह क्षेत्र बसा हुआ है। इस जगह को बिजली के तारों वाली कंटीली बाड़ों से चारों तरफ से घेरा गया है। इसकी सीमा पर जगह-जगह चेतावनी दी गई है कि अंदर आने की कोशिश करना खतरनाक साबित हो सकता है। इसके साथ ही हर जगह हथियारों से लैस जवानों को तैनात किया गया है। यह जवान चौबीस घंटे इस क्षेत्र की रखवाली करते हैं। इतनी कड़ी सुरक्षा है कि इस क्षेत्र के ऊपर से विमानों को भी आने-जाने की अनुमति नहीं है। यह क्षेत्र 3.7 किमी में फैला है। अब इस क्षेत्र को सैटेलाइट से देखा जा सकता है, लेकिन पहले ऐसा नहीं था। 

अमेरिकी सेना के मुताबिक, यह लड़ाई के मैदान की नकल है। यहां पर युद्ध की तैयारी, ट्रेनिंग और अभ्यास किया जाता है। कथित सेना के अभ्यास के लिए बने इसे क्षेत्र को रूस पर नजर रखने के लिए बनाया गया था। यहां पर एक यू-2 नामक विमान भी था। सीआईए ने हरी लाइटों और किसी रहस्यमयी विमान के बारे में बताया था। उसने कहा था कि लोग जिस विमान के बारे में बात करते हैं वह पचास के दशक में दुनिया के किसी भी विमान से ज्यादा विकसित और अलग लगता था। तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी इसके बारे में बताया था, लेकिन उस समय सिर्फ यह जानकारी दी गई थी कि यह सेना के अभ्यास से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि अमेरिकी सेना अत्याधुनिक विमानों को बनाने के लिए एरिया 51 का इस्तेमाल करती है। यहां करीब 1500 लोगों की तैनाती है। कई बार इस जगह के बारे में खुलासा हुआ है कि यहां अमेरिका का खुफिया प्रोगाम चलता है। 

एलियंस को लेकर कई कांस्पिरेसी थ्योरी हैं। जैसे कहा जाता है कि साल 1947 में न्यू मैक्सिको के रॉसवेल में एलियंस का एक अंतरिक्ष यान दुर्घटना का शिकार हो गया था। उस यान और उसके पायलटों के शवों को यहां रखा गया है। हालांकि अमेरिका की सरकार का कहना है कि यह दुर्घटनाग्रस्त विमान मौसम की जानकारी देने वाला बलून था। कई लोगों का मानना है कि एरिया-51 में एलियंस को कैद कर रखा गया है।

Saturday, 9 October 2021

क्या अंतरिक्ष में भी है बरमुंडा ट्रायंगल ?

क्या अंतरिक्ष में भी है बरमुंडा ट्रायंगल ? ..... 

बरमुंडा ट्रायंगल के बारे में कौन नहीं जानता पूरी दुनिया इसके रहस्य से वाक़िफ़ है यह अटलांटिक महासागर में वह क्षेत्र है जहां कई विमान, एयरक्राफ्ट और जहाज रहस्यमयी तरीके से गायब हो चुके हैं। कई रिसर्च के बाद भी वैज्ञानिक इसके रहस्य से पर्दा नहीं उठा पाए हैं। कई सालों से वैज्ञानिक इसके राज को जानने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनको कामयाबी नहीं मिली है। यह स्थान उत्तर अटलांटिक महासागर में स्थित ब्रिटेन का प्रवासी क्षेत्र है। यह स्थान संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्वी तट पर मियामी (फ्लोरिडा) से 1770 किलोमीटर और हैलिफैक्स, नोवा स्कोटिया, (कनाडा) के दक्षिण में 1350 किलोमीटर (840 मील) की दूरी पर स्थित है। लेकिन आज जिस बरमुंडा ट्रायंगल कि  बात करने जा रहे हैं व अंतरिक्ष में है। आइये जानते हैं। 

स्पेस वैज्ञानिकों  ने अंतरिक्ष में भी एक ऐसा क्षेत्र ढूंढ लिया है जिसे बरमूडा कहा जाता है। अंतरिक्षयात्रियों को इस क्षेत्र से गुजरते वक्त अजीबो-गरीब एहसास होता है। इस क्षेत्र में जाते ही अंतरिक्षयानों के सिस्टम और कंप्यूटरों में खराबी आ जाती है। इस क्षेत्र में अंतरिक्षयात्रियों को एक भीषण चमक नजर आती है। अंतरिक्ष में स्थित बरमूडा ट्रायंगल दक्षिण अटलांटिक महासागर और ब्राजील के ठीक ऊपर आसमान में है। जब इस क्षेत्र से कोई अंतरिक्षयान या स्पेस स्टेशन जाता है तो कंप्यूटर रेडिएशन का शिकार हो जाता है। अंतरिक्षयात्रियों की आंखें भयानक सफेद चमक की वजह से चकाचौंध हो जाती हैं।

वैज्ञानिकों का कहना है कि सूरज से हमेशा तेज किरणें बाहर आती हैं। सूरज से निकलने वाले वाली किरणों में इलेक्ट्रॉन और रेडिएशन भी होता है। जब यह रेडिएशन सूरज की रोशनी के साथ धरती के पास पहुंचता है, तो धरती के ऊपर स्थित एक परत जिसे वैन एलेन बेल्ट कहते हैं वो  रेडिएशन को हमारी धरती पर आने से रोकती है। इससे अंतरिक्ष में उसी इलाके में सूरज से आने वाले रेडिएशन का असर अधिक दिखता है। 

अंतरिक्ष में स्थित इस बरमूडा ट्रांयगल को स्पेस यात्री साउथ अटलांटिक एनोमली कहते हैं। अंतरिक्ष में इस इलाके से जाने वाले अंतरिक्ष यान और स्पेस स्टेशन जल्द से जल्द इसको पार करने की कोशिश करते हैं। इस क्षेत्र से जाने वाले सैटेलाइट को भी रेडिएशन के हमले का शिकार होना पड़ता है। कंप्यूटर सिस्टम काम नहीं करते हैं जिसकी वजह से नासा की अंतरिक्ष दूरबीन हबल भी यहां से गुजरते समय काम नहीं करती है। शायद इसी लिए इसे अंतरिक्ष का बरमुंडा ट्रायंगल कहते हैं। 



नारीलता फूल का रहस्य

नारीलता फूल का रहस्य.....

पृथ्वी पर फूलों की अनेक प्रकार की प्रजातियां हैंपरन्तु कुछ फूल अपनी बनावट और आकार के कारण लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। कुछ इसी तरह का एक फूल सामने आया है जिसकी बनावट आकार बाक़ी फूलों से हट कर है आईए जानते हैं इस रहस्यमयी फूल का सच। 

यह फूल भारत में हिमालय क्षेत्र में पाया जाता है. और वे 20 साल के अंतराल पर खिलते हैं।इस फूल को नारीलता अथवा लियाथाम्बरा  कहा जा रहा है। इस कथित फूल की बनावट नेक्ड महिला जैसी है। महिला के आकार की तरह दिखने वाला यह फूल सोशल मीडिया पर काफी लोकप्रिय हो गया है। हालांकि, इस फूल की प्रामाणिकता को लेकर कुछ निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता। कुछ लोगों का कहना है ये फूल श्री लंका मे है परन्तु सत्य क्या है किसी को नहीं पता। 

नेक्ड महिला के आकार वाला इस फूल को सोशल मीडिया पर देखा सकता है।  इस फूल को लेकर सोशल साइटों पर अलग-अलग तरह के दावे किए गए हैं। कुछ का कहना है कि इस फूल को कंप्यूटर की मदद से तैयार किया गया है। इस फूल को लेकर वास्तविकता चाहे जो है लेकिन यह फूल कौतूहल का विषय जरूर बना हुआ है। 

Thursday, 7 October 2021

मिस्र के पिरामिड

मिस्र के पिरामिड। .... 

मिस्र के पिरामिड जो रहस्य और रोमांच व अद्भुत कला शैली  का बेजोड़ नमूना बन चुके हैं यह पिरामिड दुनियाभर के सैलानियों और इतिहासकारों के लिए आकर्षण का केन्द्र बन चुके हैं। इन पिरामिडों के साथ अनेक रहस्य व खौफनाक कहानियाँ जुडी हुई हैं,जो आज भी लोगों को सोचने पर मजबूर कर देती हैं।  

इन पिरामिडों के विषय में यह भी माना जाता है कि आज भी इनकी रक्षा कब्रों में रहने वाले लोगों कि आत्मायें  करते हैं। पिरामिड में दफ़्न लोगों कि आत्माएं अपने क्षेत्र के भीतर बाहरी लोगों के दखल को सहन नहीं कर पाती और समय-समय पर अपने आसपास होने का अहसास करवाती रहती हैं। इतिहास पर नजर डालें तो हम कई ऐसी घटनाओं के बारे में जान सकते हैं जो पिरामिड में रहने वाली आत्माओं और उनसे जुड़े रहस्य को प्रमाणित करती हैं.

लेकिन अगर आपको यह लगता है कि मिस्र में केवल पिरामिड ही ऐसे रहस्यमय स्थान हैं, जिनसे संबंधित डरावनी और अविश्वसनीय अफवाहें हमें आय दिन सुनने को मिलती हैं तो आपको यह जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि शोध दल ने वहां एक ऐसे मकबरे को भी ढूंढ़ निकाला है जिसकी स्थापना आज के लगभग 4,000 वर्ष पूर्व हुई थी.

बेल्जियम के कैथोलिक यूनिवर्सिटी ऑफ लौवेन से जुड़े पुरातत्वविदों ने एक ऐसे रहस्यमय मकबरे को खोज निकाला है जिसे आज से कई हजार वर्षों पूर्व स्थापित किया गया था. इस मकबरे में एक पत्थर की पट्टिका पाई गई है जिस पर अंतिम संस्कार से सम्बंधित प्राचीन आख्यान खुदे हुए हैं.

मिस्त्र के पुरातत्व मंत्री मुहम्मद इब्राहिम का भी यह कहना है कि बीते कई वर्षों  में शायद ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी सुरक्षित मकबरे को खोज कर सार्वजनिक किया गया है. मुहम्मद हामिद के अनुसार इस मकबरे के निर्माण की तारीख प्राचीन मिस्त्र के प्रथम मध्यवर्ती कालावधि (2181-2055 ईसा पूर्व) की है. यह एक बेहद असामान्य खोज इसीलिए भी है क्योंकि उस काल से जुड़ी किसी इमारत का सही सलामत मिलना तो दूर उसके अवशेष मिलना भी बहुत मुश्किल था. यह मकबरा किसका है अभी इस रहस्य से पर्दा नहीं उठाया गया है लेकिन मकबरे तक पहुंचने वाले दल का कहना है कि खुदाई के दौरान उन्होंने कई अलौकिक ताकतों और घटनाओं को महसूस किया है. निश्चित तौर पर यह भी किसी बेहद ताकतवर व्यक्ति का ही मकबरा हो सकता है.

Tuesday, 5 October 2021

रहस्य और रोमांच से भरी हिमाचल प्रदेश की बेताल गुफा। .....

रहस्य और रोमांच से भरी हिमाचल प्रदेश की बेताल गुफा। ..... 

आज जिस रहस्य को हम आपको बताने जा रहे है वह है हिमाचल कि  बेताल गुफा। हिमाचल को भारतीय देवी-देवताओं के प्रवित्र स्थान के रूप में जाना जाता है।  हिमालय की गोद में बसी एक ऐसी गुफा, जिसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। एक ऐसी ही हिमाचल की पहाड़ियों में बेताल की गुफा स्थित है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसकी दीवारों से देसी घी टपकता रहता था।

यह गुफा हिमाचल  प्रदेश के जिला मंडी के सुंदरनगर में स्थित है। यहाँ भौणबाड़ी की माता शीतला की पहाड़ी तलहटी में उतर दिशा में हमें बेताल गुफा के दर्शन होते हैं ,जहाँ किसी  समय शुद्व देसी घी और बर्तन मिलते थे। मान्यता है कि जो भी इस गुफा से बर्तन या देसी घी मांगता था, उसकी वह इच्छा अवश्य पूर्ण होती थी। इतना ही नहीं यहां की दीवारों से घी टपकता रहता था। गुफा की लंबाई लगभग 40 से 50 मी० और ऊंचाई 15 फीट है। अगर कोई सच्चे दिल के साथ यहां कोई मन्नत मांगता है तो उसकी इच्छा अवश्य पूरी होती है, ये लोगों की मान्यता है। यह गुफा दो तरफ से खुलती है, जिसका एक मुख थोड़ा चौड़ा और दूसरा मुख कम व्यास वाला है। बेताल गुफा के भीतर 30-40 ऐसी मूर्तियां हैं, जिन पर ईश्वर के चित्र अंकित हैं। गुफा में हिंदू देवी-देवताओं की पुरानी प्रतिमाएं बनी हुई है। स्थानीय लोग इन प्रतिमाओं की पूजा करते हैं। 

मान्यता के अनुसार पहले समय में जिस भी घर में विवाह होता था, उस घर का मुखिया पूजा की थाली सजाकर गुफा के द्वार पर सिंदुर से निमंत्रण लिखकर आता था। उसके बाद विवाह के लिए जो भी बर्तन चाहिए होते थे उन्हें वे सच्चे दिल से मांगता था, अगले दिन उसके द्वारा मांगे गए बर्तन गुफा के द्वार पर होते थे, जब विवाह समाप्त होता था तो मुखिया उन बर्तनों को गुफा के बाहर रख आता था। वहां से बर्तन अपने-आप ही गायब हो जाते थे। कहा जाता है कि एक बार किसी व्यक्ति ने बर्तन वापिस नहीं किए, जिसके बाद से इस गुफा से बर्तन मिलने बंद हो गए।

लोगों का यह भी कहना है कि गुफा की दीवारों से देसी घी भी टपकता था, लेकिन बाद में बंद हो गया। मान्यता के अनुसार एक रात एक ग्वाला अपने पशुओं के साथ गुफा में आया। ग्वाला गुफा से टपक रहे घी को बार-बार अपनी रोटी में लगाता और खा जाता था, जिससे घी जूठा हो गया और उसी दिन से गुफा से घी टपकना बंद हो गया। 

स्थानीय लोगों का मानना है कि बेताल की गुफा मनोकामना पूरी करती है, जिसके चलते यह एक आस्था का स्थल बन चुकी है। लोगों की आस्था आज भी इस गुफा से जुड़ी हुई है। लोगों का कहना है कि जब गांव के पशु बीमार पड़ते हैं या दूध देना बंद कर देते हैं तो गुफा के पास पूजा-पाठ करने से सारी समस्याएं दूर हो जाती है। गुफा से संबंधित रहस्य प्राचीन काल में ही समाप्त हो गए, लेकिन गुफा का महत्व अभी भी बरकरार है।

Monday, 4 October 2021

पृथ्वी पर मौजूद हैं दूसरी दुनिया के दरवाज़े ......

पृथ्वी पर मौजूद हैं दूसरी दुनिया के दरवाज़े ......

पृथ्वी पर अनेक रहस्य है जिन मे से एक है ये वर्म होल जी हां कहा जाता हैं ये वर्म होल दूसरी दुनिया मे जाने का मार्ग है। 

फ्लोरिडा कोस्टारिका 

धरती पर अब तक इस तरह के दो वर्म होल ढूँढ़े जा चुके हैं। इनमें से एक फ्लोरिडा कोस्टारिका और बरमूडा के बीच बरमूडा त्रिकोण है, जबकि दूसरे की खोज अभी २६ वर्ष पहले 18 अगस्त 1990 को हुई। जापान, ताइवान तथा गुगुआन के मध्य स्थित यह ट्रायंगल “ड्रेगन्स ट्राइएंगल” के नाम से प्रसिद्ध है | क्या होते है ये वर्म होल ? वर्म होल इस अखिल विश्व ब्रह्माण्ड के वो छिद्र हैं जहाँ पर समय (Time) और आकाश (Space) की सारी ज्यामितियाँ एक हो जाती हैं अर्थात यहाँ पर समय (Time) और आकाश (Space) का परस्पर एक-दूसरे में रूपांतर संभव है | समय (Time) और आकाश (Space) की ज्यामितियाँ एक हो जाने की वजह से, इस अखिल विश्व ब्रह्माण्ड में जितनी भी विमायें (Dimensions) हैं वो सब उस ‘बिंदु’ में तिरोहित हो जाती हैं इसी वजह से इस बिंदु में प्रचंड आकर्षण शक्ति होती है। 

बरमूडा त्रिकोण

तो अगर आप किसी वर्म होल के मुहाने पर खड़े हैं तो उसकी अकल्पनीय आकर्षण शक्ति में फंस सकते हैं | एक बार कोई भी वस्तु उस छिद्र में फंसी तो वो स्वयं भी उस बिंदु के समान हो जाएगी लेकिन अगले ही क्षण वो इस बिंदु से बाहर किसी दूसरे लोक में होगी | जितने समय तक वो वस्तु उस बिंदु में रहेगी वो अपने आप को उस ब्रह्माण्ड की सारी विमाओं (Dimensions) में व्यक्त करेगी लेकिन ये समय इतना कम होता है कि न तो इसको किसी भी तरह से मापा जा सकता है और न ही इस मानवीय शरीर से इसका अनुभव किया जा सकता है |

अगर आप दुर्भाग्य वश इस वर्म होल में फंस गए तो, दिक्-काल (Time-Space) की सारी ज्यामितियों के हो जाने की वजह से, आप के साथ दो संभावने हो सकती है | या तो आप किसी बिलकुल अद्भुत और अनजान लोक में पहुंचे लेकिन वहां भी उसी समय में जी रहे होंगे जिस समय में आप जीते अगर पृथ्वी लोक में होते तो | ऐसा भी हो सकता है की दूसरे लोक में भी आपको अपने आस-पास, अपने लोगो की आवाज़े आ रही हों जो गायब होते वक्त आपके आस-पास थे लेकिन आप उनको देख नहीं पा रहे हों क्योकि आप उनसे इतर किसी दूसरे लोक में हैं | ऐसा इसलिए होता है की वर्म होल में फंसने की वजह आप के क्षेत्र या आकाश (Space) की ज्यामिति परिवर्तित (Change) हो गयी लेकिन आपके समय (Time) की ज्यामिति नहीं बदली |

दूसरी सम्भावना ये है कि हो सकता है वर्म होल में फंसने के बाद आप वापस उसी जगह पर हों लेकिन आप की अपनी दुनिया के लोग वहां न हों हांलाकि हो सकता है जगह थोड़ी सी बदली-बदली सी लगे लेकिन वास्तव में आप होंगे उसी जगह पर, लेकिन आप के अपने समय के संगी-साथी वहां नहीं होंगे | ऐसा समय की ज्यामिति परिवर्तित होने से होता है | यानि आपके स्थान या आकाश (Space) की ज्यामिति तो वही रही लेकिन समय (Time) की ज्यामिति बदल गयी |आप अपने ही लोक, अपने ही ग्रह पर लेकिन किसी और समय में होंगे |

यद्यपि वर्महोल की परिकल्पना वैज्ञानिको के लिए अभी भी चुनौती पूर्ण बनी हुई है लेकिन ब्रह्माण्ड के अद्भुत रहस्यों में से एक वर्म होल ने कई अनसुलझी गुत्थियों को सुलझा भी दिया है | पृथ्वी पर स्थित वर्म होलों के संबंध में वैज्ञानिकों के एक दल का विश्वास है कि इस प्रकार के अनेक छोटे वर्म होल्स इसके जल या स्थल भाग में स्थित हो सकते हैं पर किन्हीं कारणों से उनके मुँह बंद रहते हैं और यदा−कदा ही खुलते हैं, किन्तु जब खुलते हैं, तो इस प्रकार की घटनाएँ देखने−सुनने को मिलती हैं। ये छिद्र कभी−कभी ही क्यों खुलते हैं और अधिकाँश समय बंद क्यों रहते हैं? इस संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिक अब पृथ्वी स्थित अपनी प्रयोगशाला में ही छोटे आकार के वर्महोल विनिर्मित करने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि उनकी प्रकृति के बारे में गहराई से अध्ययन किया जा सके। यदि ऐसा हुआ, तो फिर लोक−लोकान्तरों की यात्रा बिना किसी कठिनाई के कर सकना संभव हो सकेगा और व्यक्ति इच्छानुसार किसी भी लोक का सफर किसी भी समय सरलतापूर्वक कर सकेगा।

ऐसे गमनागमन का आर्ष साहित्यों में यत्र−तत्र वर्णन भी मिलता है। महाभारत में एक इसी तरह के प्रसंग का उल्लेख वन पर्व के तीर्थयात्रा प्रकरण में मौजूद है, जिसमें बंदी नामक एक पंडित ने यज्ञ के आयोजन के लिए विद्वान ब्राह्मणों को समुद्र मार्ग से वरुण लोक भेजा था। चर्चा यह भी है कि यज्ञ के उपराँत वे सकुशल पुनः उसी मार्ग से पृथ्वी लोक आ गये थे। इससे स्पष्ट है कि तब लोग उस विद्या में निष्णात् हुआ करते थे, जिसे आत्मिकी या उच्च स्तरीय रूप माना जाता है। यदि ऐसा नहीं होता, तो उनका वापस लौट पाना एक प्रकार से अशक्य बना रहता। आज इसी अशक्त ता के कारण ऐसी घटनाओं में व्यक्ति एक लोक से दूसरे में पहुँच तो जाता है, पर फिर अपने पूर्व लोक में वापस नहीं आ पाता। इससे यह भी साबित होता है कि अन्य लोकों का सुनिश्चित अस्तित्व असंदिग्ध रूप से विद्यमान है।

इसी का समर्थन करते हुए प्रसिद्ध वैज्ञानिक रिचर्ड एच. ब्रायण्ट अपनी कृति “अदर वर्ल्डस” में लिखते हैं कि भौतिक आयामों से परे अपने ही जैसे किसी अन्य विश्व-ब्रह्माण्ड के लिए यह जरूरी है कि व्यक्त चार आयामों के अतिरिक्त और चार आयाम हों। यह आयाम प्रत्यक्ष आयामों को ढकेंगे नहीं, वरन् हर नया आयाम प्रत्येक दूसरे से समकोण पर स्थित होगा। वे कहते हैं कि यद्यपि इस प्रकार की विचारधारा सिद्धाँत रूप में संभव नहीं है, फिर भी गणितीय रूप से इसे दर्शाया जा सकता है। उनके अनुसार यदि भौतिक विज्ञान की पहुँच से बाहर दृश्य आयामों से परे कोई पड़ोसी अदृश्य संसार वास्तव में है, तो इसे पाँचवें, छठवें, सातवें और आठवें आयामों से बना होना चाहिए। इस प्रकार विज्ञान ने भी सूक्ष्म लोकों के अस्तित्व पर एक प्रकार से मुहर लगा दी है।


दशहत का सबब बनी मिस्र कि ममी। ...

 दशहत का सबब बनी मिस्र कि ममी। ... 

यह सच्ची घटना पर आधारित एक खौफनाक किस्सा है जहाँ एक मृत ममी रात होते ही जाग जाती थी पहले इस बात पर किसी ने ध्यान नहीं दिया परन्तु मैनचेस्टर म्यूजियम में कुछ ऐसा घटित हुआ जिसने सब को हिला कर रख दिया था ,आइए जानते है। 

मिस्र के चर्चित पिरामिडों में कैद ममी के बारे में तो हम सभी जानते हैं. प्राचीन मिस्र में ऐसा माना था कि मरने के बाद भी आत्मा को हर उस चीज की जरूरत पड़ती है जो वह जीवित रहते हुए प्रयोग कर रही है. इसीलिए जब भी कोई मरता था तो उसके शरीर को केमिकल लगाकर कुछ इस तरह दफनाया जाता था कि उसके मृत शरीर में से बदबू ना आए और ना ही उसका शरीर सामान्य गति के साथ गलने लगे. इतना ही नहीं मरने के बाद भी जीवन के होने में यकीन रखने वाले मिस्र के लोग मृत शरीर के साथ जरूरी सामान भी रख दिया करते थे, ताकि आत्मा को किसी भी प्रकार की कोई तकलीफ ना हो. मरने के बाद भी जीवन जैसी बात मिस्र के लोगों के साथ अन्य देशों के लोगों को आज बहुत दिलचस्प लगती है और यह सब वृत्तांत तब और ज्यादा आकर्षित करते हैं जब ममी के जिंदा होने की बात सुनाई देने लगे. ममी अलाइव, ममी रिटर्न जैसीहॉलिवुड फिल्में देखने वाले लोग ममी के खौफ से भली-भांति परिचित होंगे लेकिन हो सकता है उन्हें यह सब फिल्मी मसाला लगता हो. अगर ऐसा है तो हम आपको एक अजीबोगरीब घटना से अवगत करवाने जा रहे हैं जो ममी की दहशत और उसके जिन्दा होने जैसी बातों को स्वत: बयान करती है.

मैनचेस्टर म्यूजियम (ब्रिटेन) में एक ऐसी प्राचीन मिस्र की मूर्ति को लाया गया है जोअपने आप घूमती है. दिनभर शांत और एक तरफ पड़ी रहने वाली यह मूर्ति दिन ढलते ही भयानक मंजर को आमंत्रित करती है. कार्बन डेटिंग प्रक्रिया के तहत इस 10 इंच ऊंची मूर्ति की उम्र लगभग 18,00 बी.सी. बताई जा रही है और इसे 1933 में ब्रिटेन के इस म्यूजियम में लाया गया था. लेकिन अब यह मूर्ति घूमने लगी है, वह अपनी जगह बदलने लगी है. यह मूर्ति एक पुरानी ममी की कब्रमें से निकाली गई है और अब जब यह मूर्ति अपनी दिशा बदलकर इधर-उधर घूमने लगीहै तो यह सामान्य लोगों के साथ-साथ संग्रहालयों से जुड़े लोगों के लिए जिज्ञासा का विषय बन गई है. उल्लेखनीय है कि जब संग्रहालय से जुड़े लोगों ने अगले दिन मूर्ति की दिशा को बदला हुआ देखा तो उन्होंने इस मूर्ति के सामने सीसीटीवी लगा दिया और अगले दिन जब कैमरे की फुटेज में इस मूर्ति को घूमते हुए देखा तो किसी को भी अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ। 



Sunday, 3 October 2021

शिमला कि डरावनी टनल न 33 .....

 शिमला कि डरावनी टनल न 33 ..... 

बड़ोग टनल नंबर 33 में आज भी है आत्माओं का वास...कालका से शिमला तक जाने वाले रेल रुट पर वैसे तो कई सारी टनल पड़ती हैं ,लेकिन उसमे सबसे खास और डरावनी है टनल न.33 कहा जाता है कि इस टनल में आज भी उस इंजीनियर की आत्मा का वास है ,जिसने टनल के ठीक सामने आत्महत्या कर ली थी। क्या है इस टनल की कहानी मैं आप को बताने जा रहा हूँ .

शिमला में स्थित इस टनल का नाम है दि बरोग टनल ,जिसे टनल नंबर 33 भी कहा जाता है। 1143.61 मीटर लम्बी यह टनल कालका -शिमला मार्ग पर बरोग रेलवे स्टेशन के पास स्थित है। इसका निर्माण 20 वी सदी मे हुआ था और यह दुनिया की सबसे सीधी टनल है। इस टनल को पार करने के लिए ट्रेन ढाई मिनट लेती है। ब्रिटिश काल में कर्नल बरोग नाम का ब्रिटिश इंजीनियर था ,जिसे इस टनल बनाने की जिम्मेदारी दी गयी थी।उस दौरान पहाड़ो को काटने के लिए बड़े - बड़े शीशों और एस्टीलीन गैसों का इस्तेमाल किया जाता था। कर्नल ने सबसे पहले पहाड़ का निरीक्षण किया और दो छोर पर मार्ग लगवाए और मजदूरो को दोंनो छोर से सुरंग खोदने के निर्देश दिए। उसका अनुमान था कि खुदाई करते करते दोनों सुरंगे बीच मे आ कर मिल जायेंगी ,लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कर्नल के काम में थोड़ा डेवीएशन आ गया सुरंग खोदते वक़्त ऐसे डेवीएशन आना वैसे आम बात है ,लेकिन ब्रिटिश सरकार को यह सही नहीं लगा। सरकार ने पसे की बर्बादी करने का करना कर्नल पर जुर्माना लगा दिया।

मजदूरों ने भी बहुत खरी खोटी सुनाई क्योकि उनकी मेनहत बेकार चली गई थी।इंजीनियर इस बात को लेकर बहुत परेशान हो गया और एक दिन अपने कुत्ते को लेकर सुबह टहलने निकला और खुद को गोली मार ली। जिस जगह पर इंजीनियर ने खुद को गोली मारी थी उस जगह पर आज बरोग पाइन वुड होटल है। खून से सना इंजीनियर का शव घंटो तक वही पड़ा रहा। जिस वक़्त इंजीनियर ने को खुद को गोली मारी थी उस वक़्त वहाँ कोई नहीं था। इस आत्महत्या का प्रत्यक्षदर्शी सिर्फ कुत्ता था। क्योकि गांव वालो को वहा तक पहुंचने मे समय लग गया बरोग को अर्द्धनिर्मित टनल के सामने ही दफना दिया गया। इंजीनियर की मौत के बाद 1900 में टनल पर फिर से काम शुरू हुआ और 1903 में टनल पूरी तरह तैयार हो गई। ब्रिटिश सरकार ने टनल का नाम इंजीनियर के नम्म पर रखा बरोग टनल इस टनल को पूरा करने का काम एचएस हर्लिंगन ने किया। उनकी मदद स्थानीय संत बाबा भलकू ने कि थी। इस टनल के निर्माण में 8.4 लाख रूपए का खर्चा आया था।

स्थानीय लोगो का मानना है कि आज भी इंजीनियर की आत्मा इस टनल में घूमती है। यही कारण है की रात के वक़्त कोई भी टनल के पास नहीं जाता ,यहाँ के लोगे यह भी कहते है कि रात को टनल के अंदर से किसी के कहराने की आवाजे आती है। हालाँकि वास्तव में ये टनल बेहद खौफनाक है ,अगर टनल के अंदर लगी सारी लाइट बंद कर दे ,तो अंदर बेहद डरवाना मंजर होता है। अंदर पहाड़ का पानी रिस्ता रहता है। टनल के अंदर कुछ दूर चलने पर आप को एक सुरंग ,जहा से अजीबो गरीब आवाजें आती हैं। सरकार ने उस सुरंग को बंद करने के लिए लोहे का दरवाजा भी लगाया ,लेकिन एक दिन लोगो को दरवाजे का ताला टुटा मिला। तब से लेकर आज तक उसमे ताला नहीं डाला गया। आज भी टनल के अंदर से खौफनाक आवाजे आती हैं। 

क्या है भानगढ़ किले का रहस्य?

 क्या है भानगढ़ किले का रहस्य?.....

आज हम जिस रहस्य के बारे में बात करने वाले है व है भानगढ़ किला ,जी हां भानगढ़ किला पूरे भारत में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में सबसे खौफनाक जगह में से एक माना जाता है।राजस्थान के अलवर जिले के राजगढ़ नगरपालिका में स्तिथ भानगढ़ गांव को उसके ऐतिहासिक खंडहरों व किलो के लिए ही जाना जाता है।17वीं सदी का यह किला भुतहा व डरावना  होने की वजह से सुर्खियों में रहा और इस किले से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर आरकि्योलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया(ए.एस.आई) द्वारा एक सूचना बोर्ड लगाया गया है जिसमें सूचित किया जाता है कि, सूर्यास्त के बाद यहाँ प्रवेश वर्जित है।

किले के और भुतहा होने के पीछे दो कहानियाँ हैं,जिनमें से एक कहानी सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती बेहद ही खूबसूरत थी जिनसे एक काला जादू करने वाले तांत्रिक को प्यार हो जाता है। एक बार जब राजकुमारी रत्नावती अपने लिए इत्र खरीदने बाज़ार गई, उस काला जादू करने वाले तांत्रिक ने उस इत्र की बोतल को एक प्यार की खुराक के साथ बदल दिया जिससे कि राजकुमारी उसे इस्तेमाल कर उसके प्यार में पड़ जाए।जैसे ही राजकुमारी को ये बात पता चली, राजकुमारी ने उस खुराक की पूरी बोतल को एक बड़े से पत्थर में उड़ेल दिया, जो लुढ़क कर उस तांत्रिक पर जा गिरा जिससे उस तांत्रिक की वहीं मौत हो गई। मरने से पहले उस तांत्रिक ने भानगढ़ और उसके सारे निवासियों को श्राप दिया कि जल्द ही वह राज्य बरबाद हो जाएगा और वहाँ कोई भी जिंदा नहीं बचेगा। इसके कुछ दिनों बाद ही मुगलों ने किले पर आक्रमण कर दिया। किले के अन्य निवासियों के साथ राजकुमारी भी मारी गई। तबसे इस किले और इसके परिसर को भुतहा माना जाता है और कुछ बाते भी यहां कि प्रसिद्ध हैं जैसे कि सूर्यास्त के बाद किले के परिसर में कुछ अजीब सी आहटें सुनाई देती हैं।

लोगो का मानना है रात के समय इस किले में डरावनी व खौफनाक आवाजें आती हैं जैसे किले में कई सारे लोग बातचीत कर रहे हो और कभी कभी किसी के रोने व गुर्राने की चूड़ियों के खनकने कि आवाजे सुनाई देती हैं। जिससे कि लोग यहाँ जाने से कतराते हैं। सरकार ने भी रात के समय इस किले के भीतर जाने पर पाबन्दी लगा दी हैं। यहा के लोगो का कहना है कि आज भी दूर दूर तक वह खौफनाक आवाजे सुनाई देती हैं। इस किले में सूर्यास्त के बाद जो भी गया वापिस नहीं आया। किले के पिछले हिस्से में जहां एक छोटा सा दरवाजा हैं उस दरवाजे के पास बहुत अंधेरा रहता हैं कई बार वहाँ किसी के बात करने या एक तरह कि गंध को महसूस किया गया है। वही किले में शाम के समय बहुत सनाटा रहता है और अचनाक ही किसी के चीख़ने कि भनायक आवाज इस किले में गूंज जाती हैं।

गैलेक्सी मे मिले दूसरी दुनिया के रहस्यमयी सिग्नल....

 गैलेक्सी मे मिले दूसरी दुनिया के रहस्यमयी सिग्नल....

हमारे ब्रह्माण्ड में ऐसे बहुत से उन्सुल्झे रहस्य हैं जिनका पता लगने के लिए दुनिया भर के स्पेस विज्ञानिक जी तोड़ मेनहत कर रहे है और सफल भी हुए है परन्तु ब्राह्मण में कुछ ऐसे तथ्य भी सामने आते है जो समझ से परे है कुछ दिनों पहले ऐसी ही एक घटना सामने आई है।

खगोलविद (Astronomer) लगातार अंतरिक्ष में जीवन की तलाश में जुटे हुए है इसी बीच पिछले कुछ दिनों से खगोलविद (Astronomer) हजारों साल पहले मृत हो चुके एक तारे (dead star) में अजीबोगरीब बदलाव देख रहे हैं। तारे से लगातार तेज सिग्नल मिल रहा है. वैज्ञानिक मान रहे हैं कि जल्द ही किसी बड़े रहस्य से परदा उठेने वाला है।इसकी शुरुआत हो चुकी है. दरअसल 28 अप्रैल से लगातार आसमान में एक मृत तारे से कोई सिग्नल आ रहा है. ये बहुत ज्यादा ताकतवर रेडियो वेव्स (Fast Radio Burst) हैं, जो एक सेकंड के भी हजारवें हिस्से जितनी देर के आती सुनाई दे रही हैं. माना जा रहा है कि ये रेडियो सिग्नल कोई बड़ा राज खोल सकते हैं.इसकी शरुवात कैसे हुई आइये जानते है इसी साल 28 अप्रैल को एक मृत तारे, जो हमारे यहां से 30 हजार प्रकाशवर्ष दूर है, में कुछ हलचल रिकॉर्ड हुई इससे इतनी चमकीली और हाई-फ्रीक्वेंसी रेडियो वेव निकल रही थी, जो पृथ्वी से भी दिखाई दे रही थी. ग्लोबल और स्पेस के X-ray में भी ये दिखाई दिया. ये किसी भी तारे से सुनाई देने वाली अपनी तरह की पहली आवाज है. कुछ वैज्ञानिक मान रहे हैं कि इससे fast radio burst (FRB) के बारे में जानकारी मिल सकेगी. परन्तु  इससे पहले जो सिग्नल मिलते रहे हैं, वे दूसरी आकाशगंगा से आते थे, लेकिन नया सिग्नल हमारी ही आकाशगंगा में स्थित तारे से आ रहा है.

क्या है फास्ट रेडियो बर्स्ट ,ये सुदूर ब्रह्माण्ड से आने वाली वे आवाजें या विस्फोट हैं, जिनके स्त्रोत का पता नहीं लग सका है. बेहद रहस्यमयी माने जाने वाली ये आवाजें काफी दूर होने के बाद भी एनर्जी से इतनी ज्यादा भरी होती हैं कि इनकी फ्रीक्वेंसी 500 मिलियन सूर्य जितनी होती है. साल 2007 में अमेरिकन खगोलविद Duncan Lorimer ने सबसे पहले इसका पता लगाया था, जिसकी वजह से इसे Lorimer Bursts नाम मिला. इसके बाद से कई बार ये आवाजें और रोशनी दिखी है. ये रोशनी इतनी तेज होती है जो खरबों सूर्यों के एक साथ कुल मिलीसेकंड के लिए जलने पर होगी. अभी तक दिखे पैटर्न से ये माना जा रहा है कि लगातार 4 दिनों तक ये आवाजें और रोशनी हरेक घंटे पर दिखती है, जिसके बाद 12 दिनों तक कोई गतिविधि नहीं होती है.बहुत पावरफुल हैअब की बार जो फ्रीक्वेंसी सुनाई दी है, इससे माना जा रहा है कि अंतरिक्ष में हो रहे किसी बड़े रहस्य का पता लगाया जा सकेगा. इस बारे में नीडरलैंड इंस्टीट्यूट फॉर रेडियो एस्ट्रोनॉमी के शोधकर्ता Jason Hessels के मुताबिक ये फास्ट रेडियो बर्स्ट का रहस्य जानने की ओर बड़ा कदम है. आकाशगंगा में एक तारे से ये आवाजें आईं. ये तारा सूरज से कम से कम 40 से 50 गुना बड़ा है!

इसे SGR 1935+2154 नाम दिया गया है.क्या हो सकता है आवाज के पीछेकुछ हाइपोथीसिस के अनुसार ये आवाजें और रोशनी सुपरनोवा से लेकर एलियन तक का इशारा हो सकती है. वहीं कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि ये एक खास तरह के तारे का कोई संकेत है, जिसे Magenta's कहते हैं. ये ऐसे तारे हैं, जिनकी चुंबकीय शक्ति कुछ नहीं तो भी धरती से खरबों-खरब गुना ज्यादा ताकतवर है. यानी अगर ये स्त्रोत पास खिसककर चंद्रमा जितनी दूरी पर आ जाए तो ये वहीं बैठे-बैठे ही आपकी जेब से आपकी चाबी को अपनी ओर खींच लेगा, यानी कुल मिलाकर दुनिया नष्ट कर देगा. हमारे पास जो उपकरण हैं, उनसे बहुत अच्छी तरह से इन रेडियो वेव्स का पता नहीं लग पाता है लेकिन इन  दिनों में ये ज्यादा स्पष्ट होता जा रहा है. साल 2018 में सबसे पहले CHIME (Canadian Hydrogen Intensity Mapping Experiment) नाम के रेडियो टेलीस्कोप से दिखी गई. इसके बाद से इसमें दर्जनों ऐसी घटनाएं दिखीं, लेकिन इस अप्रैल में दिखी आवृति सबसे स्पष्ट और तेज मानी जा रही है. अब ये देखने की कोशिश की जा रही है कि क्या ये आवृति हजारों प्रकाशवर्ष पहले नष्ट हो चुके तारे से आ रही है या इस सिग्नल के कुछ अलग मायने हैं.


स्टोनहेंज के अध्भुत पत्थर

 स्टोनहेंज के अध्भुत पत्थर....

आज हम जिस अध्भुत रहस्य कि बात करने जा रहे है व है "स्टोनहेंज पत्थर"स्टोनहेंज इंग्लैंड के विल्ट शायर काउंटी में दुनिया के प्रसिद्ध प्रोगोतीहासिक एक विशालकाय कलाकृति व समारक है जो चट्टान के अलग अलग टुकड़ो को जोड़कर बनाई गई गोलाकार आकृति हैं कुछ लोग इसे पाषाण युग और कास्य युग से भी जोड़ते है। और बहुत से खगोल शास्त्री इसे प्राचीन वैद्यशाला के रूप मे मानते है।

इसमें सात मीटर ( 13फुट ) से भी ज्यादा ऊंची शिलाओ को ज़मीन में गाढ़ कर खड़ा किया गया है और ये बलुआ पत्थरों से बने हुए है। वैज्ञानिको के अनुसार इसका निर्माण पाषाण युग या कस्य युग में ३००० से २००० ईसा पूर्व काल में किया गया था,ऐसा माना जाता है कि इसकी आयु 4 हजार वर्षो से भी अधिक है। कहा जाता है की, स्टोनहेंज को अलग अलग हिस्सों में अलग अलग समय पर बनाया गया था। इसमें इस्तेमाल किये गए हुए पत्थर अलग अलग जगह से लाये गए है।ऐसा माना जाता है कि ये पत्थर एवेबुरी से'20 मील दूर के इलाके से लाये गए है फिर इन पत्थरो को तराशा गया और उसके बाद पत्थरो को लगभग 18 इच की ढाल वाली जमीन पर स्थापित किया गया। स्टोनहेंज में ब्लू स्टोन पत्थरों का इस्तेमाल बाहरी और अंदरूनी गोल को बनाने में हुआ है। अंदर वाले गोले के पत्थर वेल्स में प्रेस्ली पर्वत से आए थे जबकि बाहर वाले पत्थर स्थानीय खदानों से थे ।

इस स्मारक का उद्देश्य अभी तक स्पष्ट नहीं है – कुछ लोगों को लगता है कि यह सूर्य और चंद्रमा की गतिविधियों को पढ़ने के लिए उपयोग किया जाता था, दूसरों का मानना है कि यह इलाज का स्थान था, जबकि कई पुरातत्वज्ञों ने कहा कि इसका उपयोग धार्मिक उद्देश्यों के लिए किया गया था, बलि के रूप में मंदिर या एक दफन करने की जमीन के रूप में । 

वैज्ञानिको ने स्टोनहेंज के आस पास के ३ से २.५ हजार एकड़ ज़मीन की खुदाई की थी , तब उन्हें कई बार आश्चर्य चकित करने वाले चीज़े हात लगी थी, की जैसे बर्तन, हथियार और कई प्रकार की चीजें हाथ लगी है। इससे पता चलता है की , यहाँ कोई सभ्यता बसी हुई थी ,और आस पास के खुदाई में २००० से ४००० साल पहले के मानव कंकाल और हड्डियाँ मिली है। इससे अनुमान लगाया जाता है की, स्टोनहेंज के आसपास कब्रिस्तान भी थे।उन्होंने और एक चौकादेने वाली खोज की, जो खुदाई से मिले बड़े बड़े पत्थर जो सभी अंग्रेजी के "C" आकार में रचाये गये थे। ये स्टोनहेंज से लगभग ४ किलोमीटर के दूरी पर स्थित है, इसे उन्होंने " सुपर हेंज " का नाम दिया है।कुछ वैज्ञानिक मानते है की, स्टोनहेंज का संबंध सीधे एलियन से जुड़ता है। क्यूँ के इसकी बनावट और हर एक पत्थरो की दुरी बहोतही अचूक और सटीक है। इसे ऊपर से देखा जाये तो ये हमारे सोलर सिस्टम से मैच होता है।खगोलशास्त्री एडवर्ड ड्यूक के अनुसार स्टोनहेज का पूरा समारक सौर प्रणाली को दर्शाता है और उसमे स्टोनहेंज शनि की कक्षा के समान है जबकि नार्मन लायकर के अनुसार हिल स्टोन की स्थिति ग्रीषमकालीन सक्रांति को प्रकट करता है लेकिन यदि इसे उल्टा करके देखा जाए तो ये शरदकालीन सक्रांति की स्थिति को दर्शाता है। परन्तु इस स्टोनहेंज पत्थरो को किस उदेश्य से बनाया गया होगा ये आज भी रहस्य बना हुआ 


सबसे पुरानी पहाड़ी अरावली का रहस्य

 सबसे पुरानी पहाड़ी अरावली का रहस्य .....

संसार में ऐसी बहुत से स्थान है जो रहस्यपूर्ण होते है ,साथ ही कुछ स्थान ऐसे भी हैं जो कई सदियों बाद भी रहस्यपूर्ण बने रहते है ऐसा  ही एक स्थान है "अरावली "अरावली भारत के पश्चिमी भाग राजस्थान में स्थित एक पर्वतमाला है।जिसे राजस्थान में आडावाला पर्वत के नाम से भी जाना जाता है,भारत की भौगोलिक संरचना में अरावली प्राचीनतम पर्वत श्रेणी है,जो गोडवाना लेंड का अस्तित्व है। यह संसार की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखला है जो राजस्थान को उत्तर से दक्षिण दो भागों में बांटती है। इसकी उत्पत्ति प्रिकेंबियन युग (45000 लाख वर्ष ) में हुई।। अरावली का सर्वोच्च पर्वत शिखर सिरोही जिले में गुरुशिखर (1722 /1727 मी.) है, जो माउंट आबू(सिरोही) में है। अरावली पर्वतमाला के आस - पास सदियों से भील जनजाति निवास करती रही है।

अरावली पर्वत श्रंखला की अनुमानित आयु 570 मिलियन वर्ष है यह एक अवशिष्ट पर्वत का उदाहरण है जिसकी कुल लम्बाई गुजरात से दिल्ली तक लगभग 692 किलीमीटर है, अरावली पर्वत श्रंखला का लगभग 79.49% विस्तार राजस्थान में है, दिल्ली में स्थित राष्ट्रपति भवन रायसीना की पहाड़ी पर बना हुआ है जो अरावली पर्वत श्रंखला का ही भाग है, अरावली की औसत ऊंचाई 930मीटर(एनसीआरटी के अनुसार 1000 मीटर) है,तथा अरावली के दक्षिण की ऊंचाई व चौड़ाई सर्वाधिक है, अरावली या अर्वली उत्तर भारतीय पर्वतमाला है। राजस्थान राज्य के पूर्वोत्तर क्षेत्र से गुज़रती 550 किलोमीटर लम्बी इस पर्वतमाला की कुछ चट्टानी पहाड़ियाँ दिल्ली के दक्षिण हिस्से तक चली गई हैं। शिखरों एवं कटकों की श्रृखलाएँ, जिनका फैलाव 10 से 100 किलोमीटर है, सामान्यत: 300 से 900 मीटर ऊँची हैं।

यह पर्वतमाला, दो भागों में विभाजित है- सांभर-सिरोही पर्वतमाला- जिसमें माउण्ट आबू के गुरु शिखर (अरावली पर्वतमाला का शिखर, ऊँचाई (1,722 मीटर ) में और (5649.606 फ़ीट ) सहित अधिकतर ऊँचे पर्वत हैं। सांभर-खेतरी पर्वतमाला- जिसमें तीन विच्छिन्न कटकीय क्षेत्र आते हैं। अरावली पर्वतमाला प्राकृतिक संसाधनों (एवं खनिज़) से परिपूर्ण है और पश्चिमी मरुस्थल के विस्तार को रोकने का कार्य करती है। अरावली पर्वत का पश्चिमी भाग मारवाड़ एवं पूर्वी भाग मेवाड़ कहलाता है। यहां अनेक प्रमुख नदियों- बनास, लूनी, साखी एवं साबरमती का उदगम स्थल है। इस पर्वतमाला में केवल दक्षिणी क्षेत्र में सघन वन हैं, अन्यथा अधिकांश क्षेत्रों में यह विरल, रेतीली एवं पथरीली (गुलाबी रंग के स्फ़टिक) है।

अरावली पर्वत शृंखला के पास एक जवालामुखी है परन्तु इसमे कई हज़ारो सालों से विस्फोट नहीं हुआ है। इस जवालामुखी को धोसी पहाड़ी के नाम से भी जाना जाता है कहते है धोसी पहाड़ी मे कई आयुर्वेद के रहस्य है उनमेसे एक च्यवनप्राश को माना जाता है शायद ही कोई यह जनता होगा कि च्यवनप्राश धोसी घाटी की अध्भुत देन है यहाँ के लोगो का कहना है कि धोसी घाटी एक अध्भुत व चमत्कारी घाटी है जो कई आयुर्वैदिक गुणो को अपने अंदर समेटे हुऐ है इस घाटी का नीचे एक गांव है जिसका नाम धुंसरा गांव है।

यहाँ के लोग कहते है कि धोसी घाटी के ऊपर कई ऋषियों ने तपस्या की है जिस कारण धोसी घाटी में आयुर्वेद के महान तत्व स्थापित हो चुके हैं ब्रह्मव्रत रिसर्च फॉउंडेशन जो (वैदिक काल के लिखे वेदो की रिसर्च करता है )इनका कहना है घोसी पहाड़ी मे बैठ कर ही महान आयुर्वेद वेदों की रचना की गई थी उनका मानना है जो भी महान व्यक्ति इस पहाड़ी के ऊपर बैठकर जो भी वेद लिखता है यह धोसी पहाड़ी व्यक्तिऔर वेद के महान तत्व अपने अंदर स्थापित कर लेती है। 46 दुर्लभ जड़ीबूटियों को मिला कर पहली बार यही च्यवनप्राश का फॉर्मूला तैयार किया गया था। आश्रय कि बात तो यह है की राजा हेमचन्द्र विक्रमादित्य को भी धोसी पहाड़ी की महानता का पता था जिस के कारण पहाड़ी के आयुर्वेद तत्वों को सुरक्षित रखने के लिए पहाड़ी के ऊपर एक किले का निर्माण किया गया। धोसी पहाड़ी आज भी एक रहस्य बनी हुई है आखिर उसमे ऐसा क्या है जो महान वेदों महान व्यक्तियों ,ऋषियों के महान गुणों को अपने अंदर स्थापित कर लेती है।




रात होते ही जाग जाते है डेथ वैली के पत्थर .....

 रात होते ही जाग जाते है डेथ वैली के पत्थर .....

हमारी पृथ्वी अनेक रहस्यों से भरी पड़ी है ऐसा ही एक रहस्य है कैलिफोर्निया (अमेरिका)में स्थित डेथ वैली नामक नेशनल पार्क का कहा जाता है की यहाँ के पत्थर रात के समय अपने आप एक स्थान से दूसरे स्थान तक तैरते है इन पत्थरों को लेकर आम लोगों की धारणाएं कुछ और हैं लेकिन वैज्ञानिकों का कुछ और कहना हैं।

डेथ वैली नेशनल पार्क अमेरिका में पूर्वी कैलिफॉर्निया और नेवादा के बीच है। यहां का तापमान काफी ज्यादा होता है। इसके एक भूतहा शहर और रंगीन चट्टानों के कारण जाना जाता है। वैसे अब डेथ वैली वहां पाई जाने वाली कुछ पत्थर की वजह से चर्चा में है। वैज्ञानिकों का कहना है कि वो पत्थर चलते भी हैं। वैज्ञानिकों का कहना है की इन पत्थरो के चलने का कारण रेसट्रैक प्लाया नाम का एरिया है जहां पहले कभी झील हुआ करती थी। अब वह झील सूख गई है और पूरी इलाका समतल जमीन है जो पत्थरों के खिसकने के लिए बहुत उपयुक्त है। इन पत्थरों के चलने का पता 1948 में पहली लगा । पत्थरों के आगे बढ़ने का निशान वहां जमीन पर जमी हुई धूल पर पड़ जाता है। हाल ही में वहां वैज्ञानिकों ने कुछ पत्थरों में जीपीएस ट्रैकर लगा दिए ताकि उनकी गतिविधि पर नजर रहे। किसी ने चट्टान को आगे की ओर खिसकते नहीं देखा है। ऐसे में लोगों के बीच इसको लेकर तरह-तरह की धारणाएं पाई जाती हैं। कुछ लोगों का कहना है कि एलियंस की वजह से ऐसा होता है तो कुछ मैग्नेटिक फील्ड को इसके लिए जिम्मेदार करार देते हैं।

वैज्ञानिको के अनुसार धूल के बवंडर की वजह से पत्थर आगे की ओर बढ़ते हैं। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि इस विशालकाय झील के इलाके में अकसर काफी तेज हवा बहती है। उन हवाओं की वजह से ही पत्थर आगे की ओर बढ़ता है लेकिन इन थ्योरी को खारिज कर दिया गया है जिस वजह से वैज्ञानिक कोई संतोषजनक थ्योरी नहीं दे सके।परन्तु कुछ सालों पहले नासा के एक वैज्ञानिक राफ लॉरेंज ने इसकी वजह पता लगाने का दावा किया। उनका कहना था कि झील की सतह पर कुछ पानी रहता है जो ठंड में जम जाता है और झील की सतह पर कुछ पत्थर मौजूद हैं जिसके नीचे का पानी पत्थर बनकर उनसे चिपका रहता है। फिर जब मौसम गर्म होता है तो पत्थर से चिपका बर्फ पिघल जाता है जिससे झील की सतह पर थोड़ा पानी जमा हो जाता है। फिर जब हवा चलती है तो दबाव पड़ने की वजह से पत्थर आगे खिसकने लगता है और बर्फ की वजह से झील की सतह पर निशान पड़ जाता है।

डेथ वैली का तापमान पूरी दुनिया में दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा 56.7 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया जो गिनीज बुक ऑफ रेकॉर्ड में दर्ज है लेकिन यह घाटी रंग-बिरंगी चट्टानों से भरी है। इसे देखने के लिए पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। दूसरी हैरान करने वाली बात है कि समुद्र तल से 282 फीट नीचे होने के बाद भी यह घाटी एकदम सूखी है। भूवैज्ञानिकों का मानना है कि इस जगह पर कभी समुद्र रहा होगा क्योंकि यह समुद्र तल के नीचे है और घाटियों में नमक के टीले भी मिले हैं। इस क्षेत्र के रेगिस्तान बनने के साथ ही पानी सूख गया होगा और ढेर सारा नमक बचकर टीला बन गया होगा। यहां की पहाड़ों और मिट्टी में अलग-अलग तत्व जैसे बोरेक्स, नमक, सोना और चांदी पाए जाते हैं।

क्या है समय यात्रा का रहस्य.....

 क्या है समय यात्रा का रहस्य.....

आज मै आप को जिस रहस्य के बारे में बताने जा रहा हूँ व है समय जी हां समय अपने आप मै एक रहस्य बना हुआ हैं आपने बहुत सारी फिल्मो किताबों  में देखा व पड़ा होगा की हम टाइम मशीन के जरिये भविष्य व  भूतकाल के समय में आसनी से जा सकते है।Scientist का कहनाहै की Big bang से पहले समय नहीं था। तो क्यों समय नहीं था , या फिर समय क्या है, क्या समय वास्तव में है भी या सिर्फ एक भ्रम या धोखा है।

समय क्या हैं हम समय का पता गति के आधार पर लगाते है , मतलब कोई वस्तु कितनी गति करती है उस आधार पर हमें समय का पता चलता है। जब कोई वस्तु एक जगह से दूसरी जगह गति करती है तब हमें पता चलता है की कितना समय हुआ है। वो वस्तु पृथ्वी , सूर्य या घड़ी की सुई हो सकती है या फिर बैटरी से चलने वाली एक घडी भी हो सकती है। जिसमे उसके बैटरी के electron गति करते है।इस तरह से हम गति के आधार पर समय का अनुमान लगाते है। और हमने गति को एक नाम भी दे दिया है "घडी" जी हाँ घड़ी की सुई यदि इस जगह से उस जगह जाएगी तो एक घंटे,मिनिट या सैकिंड होते हैं और सूर्यउदय से सूर्यास्त तक एक दिन पुरा  हो जाता है। और पृथ्वी सूर्य का  एक चक्कर लगाने से  एक साल पुरा हो जाता है। ब्रह्माण्ड मे हर छोटी बड़ी गतिविधिओ को समय का नाम दिया गया है जिसे हम टाइम स्पेस कहते हैं इस पूरे ब्रह्माण्ड में हर चीज अपनी जगह से गति कर रही हैं  फिर वो भले ही एक साल में 1cm के करोड वे हिस्से जितनी ही गति क्यों न हो लेकिन वो वस्तु गति कर रही होगी।और जब कोई चीज गति करती है तो वो चीज घिसती है और जब वो घिसती है तो एक समय के बाद घिस-घिस कर नष्ट हो जाती है। अगर कोई व्यक्ति स्थिर खड़ा हैं कोई गतिविधि नहीं कर रहा है तब भी उसके शरीर के सेल्स और गति करते रहते हैं और समय चला रहता है

फिर एक समय के बाद ये घिस -घिस कर नष्ट हो जाते हैं ,और हमारी मृत्यु हो जाती है। और इस तरह गति के होने से या समय के बीतने से उसका नाश तो होगा ही है।समय की परिभाषा दुनिया के अलग अलग जीवो के लिए अलग अलग हो सकती है।जैसे एक मक्खी का समय हमसे बहुत तीव्र  गति से चलता है क्योंकी उसकी  गति हमसे बहुत तीव्र होती है इसलिए हमारा एक घंटा उसे एक साल जितना लगता है हमारे एक घंटे में वो अपने जीवन के एक बड़े हिस्से को जी सकती है।एक मक्खी का जीवन बहुत ही कम लगभग दिनों का होता है। इसलिए उसे लगकी ता है कि समय बहुत ही धीमी रफ़्तार से चल रहा है ,क्योंकी हमारा समय उसके समय से बहुत धीमा चल रहा है ,वही एक कछुए की गति हमसे भी बहुत धीमी रहती है , इसीलिए वो 200 से 300 साल तक जिन्दा रहे सकता है। ब्रह्माण्ड के सभी जीवो का शारीरिक और रासायनिक गतिविधिओ के आधार पर उनका जीवनकाल होता है।इसलिए कई ग्रन्थ कथाओ में देवताओ के समय को हमारे समय से अलग बताया गया है , और ब्रह्मा जी का एक दिन हमारे 4 युगो के बराबर बताया गया है।और बताया गया है कि देवी देवता कभी भी बूढ़े नहीं होते।

जब हम भूतकाल या इतिहास के बारे में सोचते है तब अपने सोचा है की हम क्या सोचते है। तब हम वास्तव में समय के बारे में नहीं बल्कि बदलाव के बारे में सोचते है। और बदलाव चीजों की गति की वजह से आता है और चीजे gravity , atmosphere , या उष्मा अथवा quantum forces की वजह से गति करती है। यही movement बदलाव लाता है और ये बदलाव हमें समय की अनुभूति करवाता है। पर जब घड़ी नहीं थी तब हमारे पूर्वज सूर्य या चन्द्रमा व तारो के द्वारा समय का पता लगते थे।अगर ग्रेट सइंस्टिस्ट Einstein की थ्योरी की बात करे तो उनकी थ्योरी ये कहती है की समय सापेक्ष है वो तीव्र या धीमा हो सकता है , समय ही 4th Dimension ( चौथा आयाम ) है और हम समय में यात्रा भी कर सकते है।

Sir Einstein की theory of relativity के अनुसार हम space में जितनी ही speed से यात्रा करेंगे , हमारे लिए समय उतना ही धीमी गति से चलेगा। Light speed से 99.99 % चलने वाले space craft में मौजूद घड़ी को आप पृथ्वी के घड़ी से मिलाएंगे तो आपको पता चलेगा की फ़ास्ट गति से चलने वाली space craft की घड़ी बहुत ही धीमी रफ़्तार से चल रही है , और अगर कोई व्यक्ति light speed से चलने वाले space craft में करीब 3 साल तक यात्रा करता है तो पृथ्वी पर जब वो वापस आएगा तो पुरे 200 साल बीत चुके होंगे।

यानि वो जिन इंसानो को पृथ्वी पे छोड़ के गया होगा वो अब इस दुनिया में ही नहीं होंगे और वो अपनी सातवीं या आठवीं पीढ़ी को देख रहा होगा। और ये सब होता है Time Dilation के कारण। ये Time Dilation ही कारण है जो की हमारे हाई स्पीड से move हो रहे Satellite में रखे Atomic Clock के समय को भी कुछ नैनो सेकण्ड्स धीमा कर देता है, जिसे हमेशा कुछ टाइम क बाद पृथ्वी के clock से मिलाना पड़ता है। ये Time Dilation हमारे Atomic Clock ( टाइम के एक सेकण्ड् के करोड़ वें हिस्से को भी count कर सकता है ) को भले ही कुछ नैनो सेकण्ड्स का ही फरक क्यों न पैदा करता हो, लेकिन इससे हमें ये पता चलता है की हम भविष्य में Time Dilation की मदत से समय यात्रा कर सकते है। ।परन्तु अभी ऐसी टेक्नोलॉजी नहीं है जिससे हम light व speed के आस पास भी जा सके। पर भविष्य में ऐसा संभव हो सकता है।

रात होते ही घेर लेती है शैतानी आत्माए। .....

 रात होते ही घेर लेती है शैतानी आत्माए। ..... 

कभी यह स्थान बहुत खुबसूरत हुआ करता था लेकिनआज इसे शैतानी रूहों ने अपने कब्जे में ले लिया है।ये आत्माए इतनी खतरनाक और दुष्ट है कि आज भी दिन ढलते ही जो भी व्यक्ति यहाँ जाता है उसे वह अपना शिकार बना लेती है। बहुत से लोग हैं जिन्हे आत्माओं ,पारलौकिक शक्तियों और शैतानी ताकतो जैसी  किसी भी चीज पर विश्वास नहीं  होता ,वह ऐसी बातो को मनगढंत मानकर झुठला देते हैं लेकिन यह भी सच है कि किसी के झुठलाने से या टाल देने से सच नहीं बदलता। आइए जानते है इस किले का रहस्य।

भोपाल के शिवपुरी में स्थित 2100 साल पुराना किला एक जमाने पहले बेहद खुशनुमा हुआ करता था.लेकिन अब यहाँ रात तो क्या दिन में भी कोई जाने का सहस नहीं करता। लोगो का कहना है यहाँ रात का समय घुँघरूओ की अवाज़े आती हैं जो दूर -दूर तक लोगो को सुनाई देती हैं.

भोपाल के शिवपुरी में एक छोटा सा क़स्बा है पोहरी। यहाँ यह किला स्तिथ है। इस स्थान के बारे में कोई नहीं जनता लेकिनजब से मीडिया में यहाँ होने वाली घटनाओ को प्रचारित किया गया है तभी से लोगो को यह समझ आने लगा है कि यहाँ कुछ ना कुछ तो गड़बड़ ज़रूर है।वे लोग जो भूत-प्रेत और आत्माओं के होने जैसी बातों पर यकीन नहीं करते अब तो वो भी इस किले को श्रापित समझने लगे है.इस स्थान की अपनी तो कोई पहचान नहीं है लेकिन जब से इस किले के भुतहा होने की बात सामने आई है तब से लोग पोहरी को पचानने लगे हैं। पहले इस किले मे दिन में स्कूल भी चला करता था लेकिन जब बच्चो ने वहां कुछ अजीबोगरीब हरकते महसूस की तो वहा स्कूल लगाना भी बंद हो गया है.यह किला वीर खाडेराव का है और लोगो का कहना है कि यहाँ जो महफ़िल जमती है वह वीर खाडेराव की सभा है.वही रात के समय अपनी नर्तकियों के साथ महफ़िल जमाते हैं। यहाँ रात को आत्मए पूरे किले को अपने कब्जे में ले लेती हैं और घनी झाड़ियों के बीच घिरे इस जंगल में अगर गलती से भी कोई रात के समय रुक गया तो उसका हश्र अच्छा नहीं होता।

सथानीय लोगो का कहना तो यह भी है कि 2100 वर्ष पुराने इस किले में वीर खाडेराव का डेरा था लेकिन उनकी मृत्यु के बाद यहाँ कोई परिवार कभी टिक नहीं पाया ,कहते है एक परिवार ने यहाँ रहने का साहस किया तो पहले हीदिन घर की महिलाए अजीबोगरीब हरकते करने लगी ,उन्हे तंत्रविद्या से ठीक करवाया गया। कुछ लोग तो यह भी कहते है कि इस किले के भीतर खजाना छिपा है जिसकी रक्षा यहाँ भटकती आत्माएं करती है। लेकिन सच क्या है इसका पता लगाने की किसी में हिम्मत नहीं है।

रहस्मय झील ,जो पानी से नहीं ,नर कंकाल से भरी पड़ी है। .....

 रहस्मय झील ,जो पानी से नहीं ,नर कंकाल से भरी पड़ी है। 

भारत के रहस्मय सफ़र की इस कड़ी मे हम आपको आज ऐसी जगह से रूबरू करवाएग जिनके रहस्य को दुनिया भर के Scientist नहीं समझ पाए।

आज हम आपको हिमालय की सुदूर घाटियों के स्थित रूपकुंड झील के अनसुलझे रहस्य के बारे मे आप को बतायेगे रूपकुंड झील ,उत्तराखंड की हिमालय पहाड़ीयो के बीच स्थित ५००० मीटर गहरी बर्फली झील है जो की सर्दीयो मे जम जाती है और गर्मीयो मे पिघल जाती है | इस झील तक सिर्फ पर्वतारोही आते है | १९४२ मे यहा पर आए पर्वतारोहीयो को १०० से भी ज्यादा नरकंकाल मिले तभी से ये तभी से ये जगह Scientist के लिए रहस्य का सबब बना हुआ है | कैसे यहाँ आय नरकंकाल और किसके है ये नरकंकाल ,इस रहस्य को सुलझाते वक्त यहाँ तीन अलग अलग तथ्य मिले है 

1. पहले तथ्य के अनुसार दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जापानी सैनिक जब इस रास्ते से गुजर रहे थे तो घनी बर्फ होने की वजह से उन्हे रास्ता पता करने में बड़ी परेशानी हुई | कई दिनों तक घूमते घूमते हायिपोथेऱमिया की वजह से इस झील वाली जगह इनकी मौत हो गयी !

2.दूसरे तथ्य के अनुसार प्राचीन समय मे जसधावल नामक राजा संतान प्राप्ति की ख़ुशी मे नंदा देवी दर्शन करने जा रहा था और रास्ते मे अचानक ओलावृष्टि के कारण पूरा जस्था उस बर्फ की झील में दफ़न हो गया !

3 तीसरे तथ्य के अनुसार १२वी शताब्दी मे यहाँ मुहमद तुगलक का आक्रमण हुआ था तो कुछ कहानिया जोरावर सिंह और उसके सैनिको पर आधारित है जो इस झील मे तीबत्त के युद्ध के दौरान शहीद हो गए थे किस तथ्य में कितनी सचाई है कोई नहीं जानता लेकीनआज भी उस झील में इन नरकंकालों को देखा जा सकता है | इतनी अधिक मात्रा में एक वीरान जगह पर नरकंकालों के मिलने से नेशनल ज्योग्राफिक के टीम भी यहाँ पर खोज करने आयी थी आज भी इस जगह पर कई पर्वतारोही इस रहस्य को देखने आते है २०१३ में इंडिया टुडे अख़बार मे इस झील के रहस्य पर से पर्दाफाश किया और बताया की Scientist की खोज मे ९वी शताब्दी में हुई भयंकर ओलावृष्टि में २०० से अधिक इंसान यहाँ इस झील में दब गए अगर आप भी इस झील को देखना चाहते हैं तो अपने आप को मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार कर लिजिये 




ज्ञानी चोर की गुफा का रहस्य

ज्ञानी चोर की गुफा का रहस्य.....  आज जिस रहस्य कि हम बात करने जा रहे हैं वह है  हरियाणा के रोहतक जिले के महम शहर में एक बावड़ी से है। महम की...