सबसे पुरानी पहाड़ी अरावली का रहस्य .....
संसार में ऐसी बहुत से स्थान है जो रहस्यपूर्ण होते है ,साथ ही कुछ स्थान ऐसे भी हैं जो कई सदियों बाद भी रहस्यपूर्ण बने रहते है ऐसा ही एक स्थान है "अरावली "अरावली भारत के पश्चिमी भाग राजस्थान में स्थित एक पर्वतमाला है।जिसे राजस्थान में आडावाला पर्वत के नाम से भी जाना जाता है,भारत की भौगोलिक संरचना में अरावली प्राचीनतम पर्वत श्रेणी है,जो गोडवाना लेंड का अस्तित्व है। यह संसार की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखला है जो राजस्थान को उत्तर से दक्षिण दो भागों में बांटती है। इसकी उत्पत्ति प्रिकेंबियन युग (45000 लाख वर्ष ) में हुई।। अरावली का सर्वोच्च पर्वत शिखर सिरोही जिले में गुरुशिखर (1722 /1727 मी.) है, जो माउंट आबू(सिरोही) में है। अरावली पर्वतमाला के आस - पास सदियों से भील जनजाति निवास करती रही है।
अरावली पर्वत श्रंखला की अनुमानित आयु 570 मिलियन वर्ष है यह एक अवशिष्ट पर्वत का उदाहरण है जिसकी कुल लम्बाई गुजरात से दिल्ली तक लगभग 692 किलीमीटर है, अरावली पर्वत श्रंखला का लगभग 79.49% विस्तार राजस्थान में है, दिल्ली में स्थित राष्ट्रपति भवन रायसीना की पहाड़ी पर बना हुआ है जो अरावली पर्वत श्रंखला का ही भाग है, अरावली की औसत ऊंचाई 930मीटर(एनसीआरटी के अनुसार 1000 मीटर) है,तथा अरावली के दक्षिण की ऊंचाई व चौड़ाई सर्वाधिक है, अरावली या अर्वली उत्तर भारतीय पर्वतमाला है। राजस्थान राज्य के पूर्वोत्तर क्षेत्र से गुज़रती 550 किलोमीटर लम्बी इस पर्वतमाला की कुछ चट्टानी पहाड़ियाँ दिल्ली के दक्षिण हिस्से तक चली गई हैं। शिखरों एवं कटकों की श्रृखलाएँ, जिनका फैलाव 10 से 100 किलोमीटर है, सामान्यत: 300 से 900 मीटर ऊँची हैं।
यह पर्वतमाला, दो भागों में विभाजित है- सांभर-सिरोही पर्वतमाला- जिसमें माउण्ट आबू के गुरु शिखर (अरावली पर्वतमाला का शिखर, ऊँचाई (1,722 मीटर ) में और (5649.606 फ़ीट ) सहित अधिकतर ऊँचे पर्वत हैं। सांभर-खेतरी पर्वतमाला- जिसमें तीन विच्छिन्न कटकीय क्षेत्र आते हैं। अरावली पर्वतमाला प्राकृतिक संसाधनों (एवं खनिज़) से परिपूर्ण है और पश्चिमी मरुस्थल के विस्तार को रोकने का कार्य करती है। अरावली पर्वत का पश्चिमी भाग मारवाड़ एवं पूर्वी भाग मेवाड़ कहलाता है। यहां अनेक प्रमुख नदियों- बनास, लूनी, साखी एवं साबरमती का उदगम स्थल है। इस पर्वतमाला में केवल दक्षिणी क्षेत्र में सघन वन हैं, अन्यथा अधिकांश क्षेत्रों में यह विरल, रेतीली एवं पथरीली (गुलाबी रंग के स्फ़टिक) है।
अरावली पर्वत शृंखला के पास एक जवालामुखी है परन्तु इसमे कई हज़ारो सालों से विस्फोट नहीं हुआ है। इस जवालामुखी को धोसी पहाड़ी के नाम से भी जाना जाता है कहते है धोसी पहाड़ी मे कई आयुर्वेद के रहस्य है उनमेसे एक च्यवनप्राश को माना जाता है शायद ही कोई यह जनता होगा कि च्यवनप्राश धोसी घाटी की अध्भुत देन है यहाँ के लोगो का कहना है कि धोसी घाटी एक अध्भुत व चमत्कारी घाटी है जो कई आयुर्वैदिक गुणो को अपने अंदर समेटे हुऐ है इस घाटी का नीचे एक गांव है जिसका नाम धुंसरा गांव है।
यहाँ के लोग कहते है कि धोसी घाटी के ऊपर कई ऋषियों ने तपस्या की है जिस कारण धोसी घाटी में आयुर्वेद के महान तत्व स्थापित हो चुके हैं ब्रह्मव्रत रिसर्च फॉउंडेशन जो (वैदिक काल के लिखे वेदो की रिसर्च करता है )इनका कहना है घोसी पहाड़ी मे बैठ कर ही महान आयुर्वेद वेदों की रचना की गई थी उनका मानना है जो भी महान व्यक्ति इस पहाड़ी के ऊपर बैठकर जो भी वेद लिखता है यह धोसी पहाड़ी व्यक्तिऔर वेद के महान तत्व अपने अंदर स्थापित कर लेती है। 46 दुर्लभ जड़ीबूटियों को मिला कर पहली बार यही च्यवनप्राश का फॉर्मूला तैयार किया गया था। आश्रय कि बात तो यह है की राजा हेमचन्द्र विक्रमादित्य को भी धोसी पहाड़ी की महानता का पता था जिस के कारण पहाड़ी के आयुर्वेद तत्वों को सुरक्षित रखने के लिए पहाड़ी के ऊपर एक किले का निर्माण किया गया। धोसी पहाड़ी आज भी एक रहस्य बनी हुई है आखिर उसमे ऐसा क्या है जो महान वेदों महान व्यक्तियों ,ऋषियों के महान गुणों को अपने अंदर स्थापित कर लेती है।
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